लड़ाई अब रंग दिखाने वाली है ....
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मेरे सपने रोज़ बनते है
रोज़ बिगड़ते है
आम आदमी हूँ न मैं!
हम जैसे लोग
हर रोज़ किस्सों में गढ़े – बुने जाते है
फिर एक दिन
आधी अधूरी कहानी की तरह
बेवजह पुरे भी हो जाते है
रोज़ कमाते है
रोज़ खपाते है
घर गृहस्थी – परिवार
इन सबकी ही फिक्र में
जिन्दगी लुटाते है
जलते है पल पल
फिर भी किसी को
पुकारते नहीं
उम्मीद बांधते नहीं
क्योंकि ……
और ऐसा करके होगा भी क्या ?
हर शख्श यहाँ
मेरे जैसे – किस्से का ही
कहीं और हिस्सा बनकर जी रहा है
घुट वोह भी रहा है
घुट मैं भी रहा हूँ….
सपने देख देख कर ही
जिन्दगी बसर कर रहा हूँ ..
जिन्दगी हर रोज़ कट रही है
येही एक गाना सुन भी रहा हूँ
और सुना भी रहा हूँ
येही मेरी जिन्दगी है
जो एक आम आदमी की
सच्ची कहानी बयां कर रही है …. रवि कवि
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